महासागरीय जलधारायें

पृथ्वी की सतह पर महासागरों के तटीय क्षेत्रों में मंद गति से ( प्रवाहित होने वाले जल को महासागरीय जलधारायें कहते है । ये जल धाराएं संवहन प्रक्रिया के द्वारा विकसित होती है जो पृथ्वी पर ताप संतुलन का कार्य करती है इन जलधाराओं के उत्पन्न होने के भिन्न – भिन्न कारण होते गा है ।

जैसे- महासागरीय ढाल , समुद्री लवणता , पृथ्वी की धूर्णन गति , पवनों : का प्रवाह इत्यादि । पृथ्वी की धूर्णन गति के कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर एक बल कार्य करता है जिसे कोरिऑलिस बल के नाम से जाना जाता है ।

फेरल के नियमानुसार कोरिऑलिस बल के कार्य करने से जल धाराएं उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दिशा से दाहिनी ओर विचलित हो जाती है तथा घड़ी की दिशा में चक्र का निर्माण करती है । दक्षिणी गोलार्द्ध में जलधाराएं अपनी दिशा से बाई ओर विचलित होकर घड़ी की विपरीत दिशा में चक्र का निर्माण करती है ।

विषुवत रेखीय क्षेत्र में जलधाराओं का प्रवाह सदैव पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर होता है जिसे विषुवत् रेखीय जलधाराएं ( Equitorial Currents ) कहते है । तटों से टकराने के बाद जब ये जलधाराएं विषुवत् रेखीय क्षेत्र में वापस लौटती है तो इन्हें विपरीत विषुवत् रेखीय जलधाराएं कहा जाता है । जो जलधाराएं विषुवत रेखीय क्षेत्र से ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर अथवा निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांश की ओर प्रवाहित होती है उन्हें गर्म जलधारा कहा जाता है जो जल धाराएं ध्रुवीय क्षेत्र से विषुवत् रेखीय क्षेत्र की ओर अर्थात् उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर प्रवाहित होती है उन्हें ठंडी जलधारा कहा जाता है ।

जिन क्षेत्रों में गर्म एवं ठंडी जलधाराएं मिलती है उन क्षेत्रों में मत्स्य उत्पादन केन्द्र विकसित होते है । विश्व की जलधाराओं को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है

( 1 ) प्रशान्त महासागरीय जलधारायें ( Pacific Oceanic Currents )

( 2 ) एटलांटिक महासागरीय जलधारायें ( Atlantic Oceanic Currents )

( 3 ) हिन्द महासागरीय जलधारायें ( Indian Oceanic Currents )

महासागरीय जलधारायें

महासागरीय जलधारायें

शिक्षा से अभिप्राय

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