भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति ऐलन ऑक्टेवियन ह्यूम ( 1829-1912 ) —सेवानिवृत अंग्रेज जो भारतीय सिविल सर्विसेज के सदस्य थे । उन्हें भारतीय जनता से बहुत सहानुभुति थी । उन्होंने ब्रिटेन में कांग्रेस के विचार रखे । 1885 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की और उसके प्रथम जनरल सेक्रेटरी ( सचिव ) बने ।
बाल गंगाधर तिलक ( 1856-1920 ) एक आक्रामक स्वतंत्रता सेनानी थे । उनको ‘ भारत में अशांति के जनक ‘ के नाम से अधिक जाना जाता था । 1896 में दक्कन में अकाल के समय उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत हुई ।
वे अपने अनुयायियों के साथ अकाल से राहत संबंध है कानून ‘ फेमिल रिलीफ कोड ‘ के बारे में बताते थे और लोगों को उत्साहित करते थे कि उन्हें अपने अधिकार मांगने में दृढ़ रहना चाहिए और डरना नहीं चाहिए ।
उनका नारा था ” स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा ” । अपनी कृति ‘ गीता रहस्य ‘ के माध्यम से वे लोगों को सिखाते थे कि उन्हें उत्पीड़न और अधर्म के विरोध में लड़ाई लड़नी चाहिए । उन्होंने दो प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र प्रारंभ किए – केसरी ( मराठी ) और मराठा ( अंग्रेजी ) जिससे लोगों में राष्ट्रीय भावना का संचार हुआ ।
तीन नेता लाला लाजपतराय , बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘ लाल , बाल , पाल ‘ के नाम से जाना जाता है ।
सुभाष चंद्र बोस ( 1897 ) _उनको ‘ नेताजी ‘ के नाम से भी जाना जाता है । 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस से त्यागपत्र दे दिया और गांधी जो के नेतृत्व में असहयोग आदोलन में कूद पड़े । 1939 में ही कांग्रेस छोड़ दी और फारवर्ड ब्लाक पार्टी का गठन किया ।
द्वितीय महायुद्ध के समय उनको बंदी बना लिया गया किंतु वे भारत से बचकर जापान चले गए । जापान में उन्होंने ब्रिटिश से लड़ने के लिए इंडियन नेशनल आर्मी ( आई.एन.ए. ) का गठन किया ।
हालांकि युद्ध के बाद जापानी आत्मसमर्पण के बाद वे असफल रहे । नेता जी की इच्छा थी कि राष्ट्रीय झंडे को लाल किला में फहराया जाए , इसीलिए उनकी याद में हर 15 अगस्त को लाल किले में राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है । उन्होंने राष्ट्र को ‘ जय हिंद ‘ का नारा दिया । ऐसा माना जाता है कि हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु 1945 में हो गई ।
महात्मा गाँधी ( 1869-1948 ) —उनको ‘ राष्ट्रपिता ‘ और ‘ बापू ‘ के नाम से भी जाना जाता है । वे अहिंसा में विश्वास करते थे । 1919 ई . से लेकर 1947 तक उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया और हिंदू – मुस्लिम एकता के लिए कार्य करते रहे । 1948 में उनकी हत्या कर दी गई ( और अधिक जानकारी के लिए देखिए ‘ भारत का स्वाधीनता संग्राम ‘ ) ।
पंडित मदन मोहन मालवीय ( 1861-1946 ) –1886 में कांग्रेस में सम्मिलित हुए और इंडियन नेशनल कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए । राउंड टेबल कांग्रेस में उन्होंने हिंदू संप्रदाय का प्रतिनिधित्व किया और हिंदू संप्रदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना की ।
सी . आर . दास ( 1870-1925 ) उन्हें देशबंधु के नाम से भी जाना जाता है । कलकत्ता न्यायालय में वे एक वकील थे । 1920 में वे राजनीति में आए । 1922 में ‘ गया कांग्रेस अधिवेशन ‘ की अध्यक्षता की और मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खान के साथ मिलकर ‘ स्वराज पार्टी का गठन किया ।
लाला लाजपत राय ( 1865-1928 ) वे एक समर्पित समाज सुधारक और शिक्षा शास्त्री थे । 1888 में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस में सम्मिलित हुए । उन्होंने 1907 में कांग्रेस विभाजन में तिलक के साथ गरमपंथी नेताओं का साथ दिया । लाला लाजपत राय ने ‘ यंग इंडिया ‘ पत्र का आरंभ किया और स्वयं ही उसका संपादन किया ।
1920 में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की और 1923 में इंडियन लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य बने । 1920 में उन्हें पंजाब में असहयोग आंदोलन के लिए जेल भेजा गया । जब वे 30 अक्टूबर , 1928 को लाहौर गए , पुलिस लाठी चार्ज में घायल हो गए और बाद में चोटों की वजह से उनकी मृत्यु हो गई । उन्हें ‘ शेर – ए – पंजाब ‘ और ‘ पंजाब केसरी ‘ के नाम से भी पुकारा जाता है ।
ऐनी बेसेंट ( 1847-1933 ) _उन्हें ‘ ग्रैंड ओल्ड लेडी ऑफ इंडियन नेशनलिज्म ‘ के नाम से भी जाना जाता है । 1989 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्या बनी और 1907 में अध्यक्षा वह भारत बस गई और लोगों के सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए काम किया । ऐनी बेसेंट कांग्रेस में सम्मिलित हुई और 1916 में मद्रास में ‘ ऑल इंडिया होम रूल लीग ‘ का शुभारंभ किया ।
1920 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में उग्र और शांत स्वभाव के सदस्यों के बीच एकता के काम में उन्होंने एक प्रमुख भूमिका अदा की । अंत में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी किंतु देश की सेवा बराबर करती रही । उन्होंने भगवतगीता का अंग्रेजी अनुवाद किया ।
गोपाल कृष्ण गोखले ( 1866-1915 ) गोखले ने गणित के अध्यापक पद से प्रारंभ किया और अपनी योग्यता की बदौलत प्रसिद्ध फरगुसन कॉलेज , पुणे के प्रिंसिपल बने । इम्पेरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में , जिसके वे 1902 में सदस्य थे एक प्रभावशाली भूमिका अदा की । उन्होंने ‘ सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी ‘ की स्थापना की और 1907 में ‘ इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे ।
सुरेंद्र नाथ बनर्जी ( 1848-1925 ) -1869 उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज में प्रवेश किया किन्तु एक मामूली सी अनियमितता के कारण उन्हें बर्खास्त कर दिया गया । उन्होंने रिपन कालेज की स्थापना की और बहुत वर्षों तक उसके प्रिंसिपल रहे । उन्होंने ‘ बंगाली ‘ दैनिक प्रारम्भ किया , जो अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता था । वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार ( 1895 और 1902 ) अध्यक्ष रहे और बंगाल विभाजन ( 1905 ) मे विरूद्ध आदोलन का नेतृत्व किया ।
दादा भाई नौरोजी ( 1825-1917 ) —उनको ‘ ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया ‘ के नाम से भी जाना जाता था । वे कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और उन्होंने इंग्लैंड में स्वराज के लिए काम किया जो राजनीतिक कार्यों का केंद्र था । लंदन काउंटी से चुने हाउस ऑफ कामन्स के वे पहले भारतीयसदस्य थे । उन्होंने एक यादगार पुस्तक लिखी – पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया ।
बिपिन चंद्र पाल ( 1858-1932 ) स्वाधीनता संग्राम के एक गरमपंथी नेता थे और विदेशी वस्तुओं के परित्याग के कट्टर पक्षपाती थे । वह स्वदेशी आंदोलन और राष्ट्रीय शिक्षा के भी पक्षपाती थे । वह प्रभुत्व सम्पन्न राज्य पर विश्वास नहीं करते थे अपितु वे पूर्ण स्वतंत्र चाहते थे । बंगाल के बंटवारे के बाद , पाल राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिज्ञ बन चुके थे । 1907 में सूरत कांग्रेस अधिवेशन में वे तिलक के अध्यक्ष पद के निर्वाचन को लेकर काफी लड़े ।
पं . जवाहरलाल नेहरू ( 1889-1964 ) –नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिभाशाली सदस्य थे । 1929 में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान उन्होंने घोषणा की कि कांग्रेस का ध्येय पूर्ण स्वाधीनता है ।
1947 से लेकर अपनी मृत्युपर्यंत तक वे भारत के प्रधानमंत्री रहे । उन्होंने पंचशील सिद्धांत का प्रस्ताव रखा जिसकी विचारधारा है कि शांतिपूर्वक रहना एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप न करना और कोई गुटबंदी न करना । वे ‘ डिस्कवरी ऑफ इंडिया ‘ और ‘ गिल्मपसेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री ‘ आदि पुस्तकों के लेखक है । डॉ . राजेन्द्र प्रसाद ( 1884-1963 )
डॉ . प्रसाद 1911 में कांग्रेस में सम्मिलित हुए थे । वे एक नए हिंदी साप्ताहिक ‘ देश ‘ का संपादन करते थे । कहा जाता है उन्होंने भारतीय राजनीति का आधार ही बदल दिया जब 1920 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि आम जनता को स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित करना चाहिए । प्रारंभिक मंत्रिपरिषद में वे खाद्य और कृषि मंत्री रहे और 1946 असेम्बली के अध्यक्ष निर्वाचित हुए । बाद में ( 1950-62 ) वे भारत के राष्ट्रपति रहे ।
मौलाना अबुल कलाम आजाद ( 1888-1958 ) —एक महान राष्ट्रीय नेता , जो सांप्रदायिक एकता में विश्वास रखते थे । 1923 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद लिए चुना गया । वे गांधी जी के करीबी सहयोगी थे । 1947 से लेकर अपनी मृत्यु 22 अप्रैल , 1958 तक वह केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहे ।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ( 1875-1950 ) . वह लौह पुरुस के नाम से भी जाने जाते है । स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में वे गृहमंत्री थे । इस समय उन्होंने भारतीय रियासतों के विलय के लिए अथक कार्य किया ।
मोतीलाल नेहरू ( 1861-1931 ) गांधीजी के समय के राष्ट्रीय नेता थे और इलाहाबाद हाइकोर्ट के विख्यात वकील थे । मोतीलाल नेहरू 1917 में ‘ होम रूल लीग ‘ में शामिल हुए और 1930 में नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये । उन्होंने स्वराज पार्टी की स्थापना की और अपने महल जैसे घर ‘ आनंद भवन ‘ ( जिसको बाद में स्वराज भवन कहा गया ) को कांग्रेस को दान कर दिया ।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति