कलिंग साम्राज्य का शासक खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख
खारवेल और उसकी उपलब्धियों के संबंध में जानकारी का महत्वपूर्ण स्त्रोत हाथीगुंफा अभिलेख है | हाथीगुंफा अभिलेख भुनेश्वर के समीप खंडगिरि उदयगिरि पर्वत पर हाथी गुफा की दीवार पर उत्कीर्ण मिलता है।
हाथीगुंफा अभिलेख मूलतः ब्रह्मही एवं प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण है। यह अभिलेख बहुत हद तक समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति से मिलता जुलता है ,जिसमें उसकी तमाम उपलब्धियों की चर्चा है।
परंतु प्रयाग प्रशस्ति तथा इसमें मुख्य अंतर यह है कि खारवेल के अभिलेख में उसकी विजयों का काल के क्रम के अनुसार विश्लेषण हुआ है वहीं प्रयाग प्रशस्ति के समुद्रगुप्त के विजय अभियानों के कॉल क्रम के अनुसार विश्लेषण का अभाव है।
हाथीगुंफा अभिलेख में कहा गया है कि 24 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद खारवेल का कलिंग के शासक के रूप में अभिषेक हुआ था|
अपने शासनकाल के 11 वें वर्ष में खारवेल ने दक्षिण भारत पर आक्रमण कर वहां के राजा की राजधानी पितहुंड को जीतकर वहां गधों का हलचल चलवा दिया।
अपने शासनकाल के बराबर वर्ष में खारवेल ने दक्षिण में तमिल राज्यों के एक संघ को पराजित किया तथा पांडे शासकों को लाखों मोती मणिरत्न इत्यादि देने को बाद किया। ऐसा प्रतीत होता है कि इस अभियान के दौरान उसका सामना सातवाहन अरे सातकरडी प्रथम से हुआ था। उसके अभिलेख में इसके शासनकाल का उल्लेखित अंतिम वर्ष 13 वर्ष है। परंतु अभिलेख में यह ज्ञात नहीं होता कि या 13 वर्ष खारवेल के राज्य काल का अंतिम वर्ष था या उसने और अधिक वर्ष तक शासन किया।
खारवेल को भारतीय इतिहास में उसके मात्र से सैनिक उपलब्धियों की वजह से याद नहीं किया जाता है बल्कि उसकी सांस्कृतिक उपलब्धियों भी बहुत महान थी ।
खारवेल के अभिलेखों में उसे एक धर्मपरायण और कला के संरक्षक शासक के रूप में चित्रित किया गया है। उसे शांति व समृद्धि का सम्राट और भिक्षुक सम्राट व धर्मराज कह कर पुकारा जाता है । जिसने अपना ध्यान कल्याणकारी कार्यों को देखने और सुनने में लगाया।
खारवेल ने गीत नृत्य व संगीत से जुड़े 64 कलाओं को अपने राज्य में फिर से स्थापित किया जो मौर्य द्वारा निषिद्ध थे । अपने शासनकाल के पांचवें वर्ष में खारवेल ने तनशुली नामक स्थान से अपनी राजधानी तक एक नहर की मरम्मत कराई। इस नहर को नंदराज ने 300 वर्ष पूर्व बनवाया था। संभवत अपने जीवन की सांध्य बेला में चंद्रगुप्त मौर्य की भांति जैन साधु की दीक्षा स्वीकार कर ली थी और अनंत चतुष्टय की साधना में उसकी मृत्यु हो गई।
इस प्रकार उपरोक्त विवरण से इस बात की पता चलती है कि खारवेल एक महान विजेता शासक होने के साथ-साथ ही एक कला और संस्कृति की दृष्टि से भी एक महान शासक था । खारवेल ने अनेक जनकल्याणकारी कार्य किए जैसे नहरों का निर्माण करवाया तथा जनता को करो से मुक्त करा दिया परंतु उसके निर्माण द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य उसकी मृत्यु के साथ भी समाप्त हो गया। इसके बाद उसके वंश की जानकारी नहीं मिलती है।
अंततः यह कहा जा सकता है कि ईसा पूर्व पहली शताब्दी के मध्य वह भारतीय राजनीतिक में एक धूमकेतु की तरह आया और अपनी उपलब्धियों के तत्कालीन भारत को चकाचौंध कर ओझल हो गया।
वैदिक साहित्य का सामान्य परिचय