वैदिक साहित्य का परिचय

वैदिक साहित्य

वेद ,ब्राम्हण  , arayank तथा उपनिषद आदि को वैदिक साहित्य के अंतर्गत रखा जाता है।वेद विद् धातू से निकला है जिसका अर्थ होता है जानना या ज्ञान। जीवन जगत और ईश्वर कायथार्थ ज्ञान ही वेद कहलाता है। वेदों को श्रुति साहित्य भी कहा जाता है क्योंकि आर्यों को लिपि का

ज्ञान ना होने के कारण वेद श्रवन परंपरा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाई जाती थी। वैदिक साहित्यआज हमें जिस रूप में प्राप्त होती है उसे संहिता कहा जाता है। वेदों को आप गुरु से कहा जाता है अर्थात वेद

ईश्वर के द्वारा लिखा गया है या रचित किया गया है। वेद किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं रचित किया गया है। यह माना जाता है

कि वैदिक ऋषि और मुनि जब ध्यान मग्न अवस्था में होते थे तो उनको अक्सर ईश्वरी संदेश

प्राप्त  होते थे और उन्हीं संदेशों का संकलन वेद किया करते थे और यही वेद कहलाया। 

वेद प्रायः पदों में लिखा जाता था। इसका एकमात्र अपवाद यजुर्वेद है । यजुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों में लिखे गए हैं।

 ब्राह्मण साहित्य

पद्यात्मक वेदों का गद्यात्मक विश्लेषण जिस वैदिक साहित्य में किया गया है उसे ब्राम्हण साहित्य कहा जाता है।

अन्य शब्दों में ब्राह्मण साहित्य विशुद्ध रूप से गद्य में लिखा गया है। ब्राह्मण शब्द ब्रम्ह शब्द से निकला है जिसका

तात्पर्य है कर्मकांड या विधि विधान से होता है अर्थात वाह विधि जिसके अनुसार यज्ञ कर्मकांडओं का अनुष्ठान

किया जाता है।

 Aryank साहित्य

 Aarynak अरण्य शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है जंगल। इस प्रकार आर्यानक उस साहित्य का नाम है

जिसे गांव से दूर  जंगलों में बैठकर रचा गया है और वही उसका पठन पठान किया गया है। यह आर्यन  

पद्य और  गद्य दोनों में लिखे गए हैं।

उपनिषद

वैदिक साहित्य का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है उपनिषद दो शब्दों से मिलकर बना है  उप और निषद

जिसका तात्पर्य है गुरु के समीप  शिष्य का जाना उपनिषद का प्रतिपाद्य विषय ब्रह्म या दर्शन अध्यात्म

  की रहस्यमई बातें होती हैं। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है इसलिए इसे वेदांत कहकर

भी पुकारा जाता है।

 वेदों के प्रकार

 वेदों की संख्या 4 है ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद अथर्ववेद इनमें से प्रथम तीन विद को सम्मिलित रूप से त्रयी कहा

जाता है पूर्ण हीरोइन अर्थात ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को त्रयी के नाम से जाना जाता है। वैदिक युग को दो भागों

में बांटा जाता है पूर्व वैदिक काल तथा उत्तर वैदिक काल। क्योंकि पूर्व वैदिक काल की इतिहास की जानकारी

हमें ऋग्वेद से प्राप्त होती है इसलिए पूर्व वैदिक काल को  ऋग्वैदिक काल कहा जाता है।

शेष सारे वैदिक साहित्य उत्तर वैदिक  कॉल में लिखा गया है एवं यह उत्तर वैदिक काल की जानकारी देते हैं


 ऋग्वेद

ऋग्वेद में विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाय जाने योग्य मंत्रों का संकलन किया गया है। ऋग्वेद में कुल मूल

शब्दों की संख्या 1017 हाय जिसमें बाद में 11 वालों की लिस्ट तो को पर एसएसटी के रूप में जोड़कर

शब्दों की कुल संख्या 1028 कर दी गई है इसमें मंडलों की कुल संख्या 10 है जिसमें से दो से लेकर 7

तक के मंडल को गोत्र मंडल या वंश मंडलीय ऋषि मंडल कहा जाता है। यह मंडल ऋग्वेद के सर्वाधिक

प्राचीन मंडल हैं। ऋग्वेद का सर्वाधिक नवीनतम मंडल पहला और दसवां मंडल है। ऋग्वेद के नवम मंडल

में कवि अंगिरस  कहता हैकि मैं एक कवि हूं मेरे पिता  वैद्य है और मेरी माता आटा पीसने वाली है और

इस प्रकार एक ही घर में रहकर हम सब विभिन्न व्यवसायों मैं संलग्न है । ऋग्वेद में यमुना शब्द की चर्चा

तीन बार जबकि गंगा शब्द की चर्चा एक बार हुई है।

 

 सामवेद

 सामवेद में कुल 1549 मंत्रो का संकलन है जिसमें से इसके अपने मंत्र केवल 75 है बाकी

शेष सारे मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं इससे यह पता चलता है कि चारों वेदों में सामवेद का सबसे

कम इतिहासिक महत्व है। सामवेद में गाए जाने योग्य मंत्रों का संकलन किया गया है इन मंत्रों को

गाने  वाले को उदगाता कहां जाता  था।  यह उदगाता पुरोहित होता था। शाम शब्द का अर्थ संगीत

होता है। इस वेद के अंतर्गत वैसे मंत्रों का संकलन किया गया है जिसे गाया जा सके वर्तमान भारतीय

शास्त्रीय संगीत का मूलभूत ग्रंथ सामवेद को माना जाता है।

 

 यजुर्वेद

 यजुर्वेद  यजु शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है  यज्ञ। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि जिस वेद से यज्ञ

संबंधी हमें ज्ञान प्राप्त होता है वह वेद यजुर्वेद कहलाता है। यजुर्वेद का अंतिम अध्याय इस उपनिषद कहलाता है

गीता में जिस निष्काम कर्म का उल्लेख मिलता है उसका सर्वप्रथम उल्लेख इसी ग्रंथ में मिलता है। 

 अथर्ववेद

अथर्ववेद मैं जादू मंत्र टोना टोटका औषधि आदि का वर्णन मिलता है या थारो वेद एक मात्र एक जावेद है जिसके

अपनी कोई aaryanak ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। अथर्ववेद एक मात्र ब्राह्मण साहित्य गोपथ ब्राह्मण है। भारत का  राष्ट्रीय

आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते (सत्य की हमेशा विजय होती है) इसका अर्थ है ।  इस वाक्य को मुंडको उपनिषद से

लिया गया है। यह उपनिषद अथर्ववेद का उपनिषद साहित्य यम नचिकेता संवाद कठोपनिषद में मिलता है या

कठोपनिषद यजुर्वेद का भाग है।

 

भक्ति का सबसे पहले उल्लेख श्वेतेश्वर उपनिषद में मिलता है । सविता देव को समर्पित गयात्री मंत्र ऋग्वेद

के तीसरे मंडल से लिया गया है। अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त वैदिक राष्ट्रीय वाक्य कहलाता है।

 मुंडकोपनिषद मैं यज्ञ की तुलना फूटी नाव से की गई है। और उसके बारे में कहा गया है कि यज्ञ वह नाव का है

जिस पर सहज विश्वास नहीं किया जा सकता है

ऋग्वैदिक कालीन एवं उत्तरवैदिक कालीन सामाजिक जीवन

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