भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध का परिचय ,भगवान बुद्ध का पालन पोषण ,भगवान बुद्ध शादी ,भगवान बुध का गृह त्याग ,भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति, भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश, भगवान बुध का महापरिनिर्वाण या मृत्यु आदि के बारे में यहां पर संक्षिप्त विवरण दिया गया है।
भगवान बुद्ध का परिचय
बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवानबुद्ध को सिद्धार्थ गौतम बुद्ध आदि नामों से जाना
जाता है ।भगवान बुध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान
में हुआ था। लेकिन लुंबिनी नामक स्थान को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है कि कुछ
विद्वान ने के अनुसार लुंबनी तिलोराकोट नामक स्थान है जबकि अन्य विद्वानों के
अनुसार लुंबिनी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में स्थित पिपराहवा नामक स्थान था।
भगवान बुद्ध के पिता जी का नाम शुद्धोधन था उद्बोधन कपिलवस्तु के शाक्य गढ के
मुखिया थे।शाक्य गण कौशल महाजनपद के अधीन आने वाले एक गणराज्य था । महात्मा बुद्ध
की माता का नाम महामाया का।भगवान बुद्ध की माता महामाया रामग्राम के कोलीगढ़ की
थी।
भगवान बुद्ध का पालन पोषण
महात्मा बुद्ध के जन्म के सातवें दिन ही भगवान बुद्ध की माता महामाया की
मृत्यु हो जाती है। तब इनका पालन-पोषण महात्मा बुद्ध की मौसी प्रजापति गौतमी ने
किया था। प्रजापति गौतमी के साथ शुद्धोधन बाद में शादी कर ली। इसलिए प्रजापति गौतमी
भगवान बुध की विमाता या सौतेली मां भी हो गई थी । भगवान बुद्ध को बचपन में
सिद्धार्थ के नाम से जाने जाते थे । भगवान बुद्ध की पालन-पोषण इनकी मौसी के द्वारा
प्रजापति गौतमी के द्वारा किए जाने के कारण उनको गौतम भी कहा गय।
भगवान बुद्ध की शादी
भगवान बुद्ध केपिता शुद्धोधन ने गौतम बुद्ध की शादी 16 वर्ष की अवस्था में शाक्य गढ़
की एक रूपवतीकन्या अर्थात सुंदर कन्या यशोधरा के साथ करा दी। यशोधरा का अन्य नाम
गोपा बिम्बाभद्रकच्चान्ना भी था महात्मा बुद्ध को बाद में एक राहुल नाम के पुत्र रत्ना की भी
प्राप्ति हुई थी जिसका तात्पर्य एक और बंधन।
भगवान बुध का
शुरू से ही महात्मा बुध का मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगता था एक बार वे रथ में सवार
होकर शहर भ्रमण के निकले थे।
उन्होंने बारी-बारी से चार दृश्य को देख आ पा रहे एक वृद्ध व्यक्ति को फिर दूसरा एक
रोगी व्यक्ति को फिर तीसरे एक शव को ले जाते रोते चिल्लाते बिलखते एक भीड़ को तथा
चौथा एक खुशहाल सन्यासी को देखे थे पूर्ण। अंतिम दृश्य को देखकर महात्मा बुध का man
Sanyas की ओर प्रवृत्त हुआ और 29 वर्ष की अवस्था में महात्मा बुद्ध ने घर को त्याग
दिया और गृह त्याग की इस घटना को बौद्ध साहित्य में महाभिनिष्क्रमण के नाम से जाना
गया।
भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति
गृह त्याग के बाद सबसे पहले उनकी मुलाकात जिस गुरु से हुई थी वे वैशाली के
शंख्यादर्शन के गुरु आलारकलाम थे अर्थात महात्मा बुध के पहले गुरुवार आलारकलाम थे
तत्पश्चात वे राजगृह के रूद्रक रामपुत्र से मिले। इसके बाद महात्मा बुद्ध गया में
चले गए और वहां पर निरंजना नदी आधुनिक नाम फल्गु नदी के किनारे एक पीपल के नीचे या
पेड़ के नीचे पंचवर्गीय ब्राम्हण भिकच्छू के साथ 7 वर्षों की घोर तपस्या की थी।
इसके बाद भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकी तो उन्होंने उरुवेला के एक सेनानी की
पुत्री सुजाता के द्वारा प्रदान किए गए खीर को खाकर अपनी तपस्या भंग कर दी जिसकी
वजह से पंच वर्गी ब्राम्हण भिक्षु बुध को दिग्भ्रमित मानकर उनका साथ छोड़कर सारनाथ
चले गए। इधर खीर खाने के बाद भगवान बुद्ध ने एक बार फिर से समाधि लगाई। 7 सप्ताह
समाधि में रहने के बाद 49 वे दिन ज्ञान या संबोधी की प्राप्ति हुई।गया बोधगया और
जिस पीपल का वृक्ष नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ वह पीपल का वृक्ष बोधि वृक्ष
कहलाया। इसे बंगाल के गौड़ वंसी एक कट्टर शैव शासक शशांक में कटवा डाला था|
ज्ञान प्राप्ति का दिन वैशाख पूर्णिमा का दिन था उल्लेखनीय है कि महात्मा बुध का
जन्म ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु वैशाख पूर्णिमा के दिन होने की वजह से इस दिन को
अर्थात वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है या मनाया जाता है।
भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश
भगवान बुद्ध ने गया में तपस्सु और मलिक नाम के 2 सूद्र बंजारे को अपना सब से पहले
शिष्य बनाया है इसके बाद सारनाथ चले गए और वहां ऋषिपट्टनम या मृगदाव नामक एक उद्यान
में उसी पंच वर्गी ब्राह्मण भिक्क्षु को अपना सर्वप्रथम उपदेश दिया जो कि बोधगया
में उनका साथ छोड़ कर चले गए थे बुद्ध के इस प्रथम उपदेश की घटना को बौद्ध साहित्य
में धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से पुकारा जाता है इस प्रथम उपदेश को महात्मा बुद्ध
के दर्शन कर संपूर्ण भारत वार्इआरए सत्यनी का सिद्धांत अंतर्निहित है। महात्मा
बौद्ध संघ में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति
बुद्ध ने सारनाथ नहीं सबसे पहले बौद्ध संघ की स्थापना की। बौद्ध संघ के शुरुआत में
उन्होंने महिलाओं के प्रवेश को निषिद्ध रखा था परंतु आनंद के कहने पर सबसे पहले
मौसी प्रजापति गौतमी इसके बाद प्रजापति गौतमी की पुत्री नंदा उसके बाद अपनी पत्नी
यशोधरा ko Pravesh Diye।
भगवान बुद्ध का जन्म स्थान प्राथमिक राज में होने के कारण उन्होंने गणतंत्र के पद्धति के
आधार पर आपकी बिच्छू संघ का नाम संघ रखा था। भगवान बुद्ध का भिक्षु संघ वस्तुतः एक
धार्मिक गणतंत्र था उसमें समस्त सदस्यों के अधिकार बराबर के थे। बौद्ध संघ की सभा में
सदस्यों को बैठने की सारी व्यवस्था आसन प्रज्ञा पार्क नामक एक अधिकारी करता था और
विधान सभा में प्रस्तुत प्रस्ताव को वृत्ति कहा जाता था। जब प्रस्ताव को बरसात में प्रस्तुत
किया जाता था तब यह अनु सावन या कमवाचा कहलाता था। किसी भी प्रस्ताव पर निर्णय
बहुमत से होता था जिससे भूमिसीकम कहां जाता था बौद्ध संघ में मतदान दो तरह का
होता था गुलहक अर्थात गुप्त मतदान तथा विवतकअर्थात खुला मतदान। प्रव्रज्या शिक्षा
15 वर्ष की अवस्था में जबकि उप संपदा ईशिक्षा 20 वर्ष की अवस्था में प्रदान की जाती थी।
वास्तव में भिक्षु जीवन का प्रारंभ प्रव्रज्या विदिशा से होता था उसकी पूर्णता ऊपर संपदा की
दीक्षा के साथ होती थी सन्यासी अभी जो धर्म को ग्रहण करना कब राज्य कहलाता था सन्यास
से ग्रहण करने की विधि को प्रव्रज्या कहा जाता है।
भगवान बुध का महापरिनिर्वाण या मृत्यु
भगवान बुध आनंद के साथ जो कि एक निजी परिचारक थे। महात्मा बुध अपने विचारों का
प्रचार प्रसार करते हुए बाबा पहुंच गए और विराम भगवान बुध वहां पर चंद नामक के कर्माकार
कार्य सुनार के द्वारा प्रदान किए गए सूअर के मांस खाने से उनकी तबीयत खराब हो गई और
कुशीनगर में जाकर 80 वर्ष की अवस्था मैं 483 ईसा पूर्व में उनकी मृत्यु हो गई । भगवान बुद्ध
की मृत्यु को बौद्ध साहित्य में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।