प्रदर्शन विधि अथवा व्याख्यानयुक्तप्रदर्शन विधि
प्रदर्शन विधि में अध्यापक पाठ विषय के व्याख्यान के साथ-साथ पाठ विषय से संबंधित आवश्यक प्रयोग अध्यापक स्वयं करके छात्रों को दिखाते हैं। किसी वस्तु के बारे में पढ़ाने पर उस वस्तु को प्रदर्शित करके उस वस्तु की रचना एवं कार्य प्रणाली का वास्तविक रूप में ज्ञान कराता है। विद्यार्थी कक्षा में अपने-अपने स्थानों पर बैठे-बैठे ही अध्यापक के द्वारा दिखाए गए विभिन्न प्रकार के उपकरणों प्रयोगों और क्रियाओं को देख कर समझते रहते हैं । इस प्रकार छात्र विषय वस्तु के बारे में कानों के द्वारा सुनते जाते हैं और आंखों से देखते जाते हैं। इस विधि में छात्र केवल निष्क्रिय श्रोता और मुख दर्शक ही नहीं बने रहते हैं बल्कि छात्रों को सक्रिय रुप में भाग लेने का भी पर्याप्त अवसर दिया जाता है। शिक्षक प्रदर्शन करते समय उनसे आवश्यकता के अनुसार प्रश्न पूछते रहते हैं। प्रदर्शन विधि में विद्यार्थियों की योग्यता रुचि और सामर्थ्य के अनुसार प्रदर्शन में अध्यापक सहायता भी लेता रहता है जिससे वह उत्साह पूर्वक सक्रिय रूप से भाग ले सकें ।
प्रदर्शन विधि की विशेषताएं एवं गुण
स्पष्ट और स्थाई ज्ञान
प्रदर्शन विधि में प्रत्यक्ष वस्तु एवं प्रयोग प्रदर्शन आदि से पाठ्य विषयों के अधिक से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। भौतिक विज्ञान ओके कठिन से कठिन प्रशन भी आसानी से बच्चों की समझ में आ जाते हैं दूसरे क्रियात्मक कार्यों में अधिक रूचि होने कारण बच्चे अधिक रूचि एवं उत्साह से विषय का अध्ययन करते हैं। इस विधि में बच्चे पाठ विषय को सुनते और प्रयोग प्रदर्शन द्वारा साथ साथ देखते भी रहते हैं जिससे उनकी मानसिक शक्तियों का पूरा उपयोग होता है और वे सक्रिय छात्र बनकर ज्ञान प्राप्त करते हैं इस तरह से प्राप्त ज्ञान अधिक स्थाई और उपयोगी होता है।
मानसिक विकास में सहायक
प्रदर्शन विधि में विद्यार्थी प्रयोग और प्रदर्शन द्वारा ज्ञान को ग्रहण करते हैं जिससे वे उस पाठ्यवस्तु को भलीभांति सोच कर उस परिणाम तक पहुंचते हैं। अतः उन्हें अपनी निरीक्षण शक्ति तर्कशक्ति तथा विचार शक्ति आदि अनेक मानसिक शक्तियों को विकसित करने का पर्याप्त अवसर मिल जाता है इसके अलावा छात्रों को प्रदर्शन विधि के द्वारा वैज्ञानिक ढंग से सोचने समझने और कार्य करने तथा अपने दृष्टिकोण को वैज्ञानिक रूप प्रदान करने में बहुत मदद मिलती है ।
सक्रिय वातावरण
इस विधि में व्याख्यान के साथ-साथ प्रयोग प्रदर्शन के द्वारा पाठ्य वस्तुओं को पढ़ाया जाता है इसमें केवल विद्यार्थियों के ऊपर अध्यापकों को द्वारा शब्दों की बौछार नहीं किया जाता। इस विधि में विद्यार्थी अध्यापकों के द्वारा किए गए विभिन्न प्रयोगों और क्रियाओं मैं सहायता करते हैं और अध्यापक बीच-बीच में विद्यार्थियों से प्रश्न पूछ कर विद्यार्थियों को सक्रिय बनाए रखते हैं।
प्रदर्शन विधि की दोष अथवा सीमाएं
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव
मनोवैज्ञानिक की की दृष्टि से देखा जाए तो इस विधि में काफी कमियां नजर आती हैं । विज्ञान का अध्ययन अध्यापन करो और सीखो शिक्षण की सिद्धांत पर आधारित होता है। लेकिन इस विधि में देखो सुनो और समझो कि सिद्धांत पर ज्ञान प्रदान किया जाता है। विद्यार्थियों को सिद्धांत स्पष्ट होने पर भी उनके मन में उत्सुकता एवं जिज्ञासा पहले जैसी बनी ही रहती हैं और वे चाहते हैं कि वे इस प्रयोग को स्वयं करें और परिणाम प्राप्त करें। इस विधि में उनकी अन्वेषण आत्मक रचनात्मक आदि प्रविष्टियों को सही प्रकार से पनपने का पूरा अवसर नहीं मिलता अतः मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह विधि अधिक सफल नहीं है।
प्रयोगात्मक क्षमता का अभाव
प्रदर्शन विधि में विद्यार्थी को स्वयं प्रयोग एवं प्रत्यक्ष वस्तुओं द्वारा स्वयं व्यक्तिगत रूप से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलता इसलिए उन्हें प्रयोग करने और स्वयं ज्ञान प्राप्त करने की योग्यता का विकास नहीं हो पाता है किसी भी प्रयोग संबंधित क्रिया अथवा उपकरण के प्रयोग को केवल सुनकर को देखकर नहीं बल्कि उससे प्रत्यक्ष रूप से संबंध जोड़कर ही जाना जा सकता है । भौतिक विज्ञान का महत्व उसे प्रयोग में लाने में ही है तथा प्रयोग संबंधी कुशलता और प्रयोग संबंधित व्यावहारिक बुद्धि के लिए अध्यापक द्वारा प्रदर्शन नहीं स्वयं व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्ष अनुभव होना आवश्यक है।
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