सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों का या हड़प्पा वासियों का धार्मिक जीवन

हड़प्पा वासियों का धार्मिक जीवनसिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों का या हड़प्पा वासियों का धार्मिक जीवनहड़प्पा- वासियों के धार्मिक जीवन के अंतर्गत हम लोग हड़प्पा सभ्यता सिंधु घाटी की सभ्यता सेंधव सभ्यता सिंधु सरस्वती सभ्यता आदि सभी नाम हड़प्पा सभ्यता का ही नाम है अर्थात  हम लोग इन सभी सभ्यताओं के के लोगों का धार्मिक जीवन हड़प्पा वासियों के धार्मिक जीवन नामक अध्याय मैं हड़प्पा सभ्यता   के लोगों का धार्मिक जीवन अध्ययन करेंगे। जिसमें हड़प्पा सभ्यता की धार्मिक जीवन हड़प्पा सभ्यता  के लोग किस प्रकार की पूजा करते थे किस चीज की पूजा करते थे  आदि का अध्ययन करेंगे। 

मातृ  देवी की उपासना

हड़प्पा वासियों का पूजा पाठ धार्मिक कार्य  एक महत्वपूर्ण अंग था। प्राप्त साक्ष्य के आधार पर हड़प्पा कालीन लोगों का धार्मिक  जीवन आज के हिंदू धर्म के समान थे। हड़प्पा सभ्यता में मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी जिसके  प्रमाण वहां से प्राप्त मोहर वह मूर्तियां है। हड़प्पा से प्राप्त आयताकार वाली एक लेखयुक्त मुहर में सिर के बल खड़े एक  स्त्री के पेट से उगता हुआ पौधे  दिलाया गया है। इसी प्रकार हड़प्पा से प्राप्त एक अन्य मुहर में पीपल की दो शाखाओं के बीच स्त्री की आकृति बनी है तथा पेड़ के नीचे बकरा लिए एक मानव की आकृति और उसके पीछे   भीड़ खड़ी दिखाई गई है इन सभी साक्ष्यों  से यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मात्री देवी की उपासना जानने या उर्वरता या वनस्पति की देवी के रूप में करते थे।

शिव की उपासना

मैंक  को मोहनजोदड़ो से एक ऐसी मुहर के साथ मिले हैं जिसमें सिंह वाले एक त्रिमुखी पुरुष को योग की पद्मासन मुद्रा में लगभग नग्न बैठे दिखलाया गया है। इसके दाहिनी ओर एक हाथी और   एक बाघ एवं बाएं तरफ एक  गैंडा व भैंसा व सिंहासन के नीचे एक दो सिंग वाले हिरण की आकृति बनी है मार्शल ने इसका संबंध ऐतिहासिक काल के शिव के साथ बताया है। शिव की उपासना से संबंधित एक अन्य साक्ष मोहनजोदड़ो से भी प्राप्त होते हैं।

लिंग व योनि पूजा 

मोहनजोदड़ो तथा  हड़प्पा से विशाल संख्या में चक्र मिले हैं। लोथल से भी चमकीली  पत्थर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। प्रत्येक  चक्र के मध्य में एक क्षेत्र है जिन्हें विद्वानों ने योनि का प्रतीक माना है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से कुछ पत्थरों पर ऐसा निर्मित साक्ष्य मिले हैं जिसकी पहचान लिंग के रूप में की गई है । अतः हड़प्पा वासी के लोग लिंग व योनि पूजन किया करते थे

पशु पूजा

आज के इस आधुनिक युग की भांति हड़प्पा वासी पशु पूजा भी किया करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा में अर्ध माना तथा आधा पशु आकृति को एक श्रृंगी बाघ से लड़ते हुए दिखाया गया है। यह सबूत मेसोपोटामिया की गिलगमिश की पौराणिक कथा का पूरा दृश्य उत्पन्न कर आता है गिलगमिश वहां के एक राक्षस का नाम था वास्तविक पशुओं में गलकमबल युक्त बैल डीलदार (Kuku mand vrishabh) भैंसा हाथी गैंडा बाघ हिरण आदि का अंकन हड़प्पा मोहनजोदड़ो कालीबंगा लोथल आदि पूरा स्थलों से प्राप्त मोहरों पर मिलता है। सामान्य पशुओं में को ब्रदर बैल काफी लोकप्रिय व पूजनीय था

योग की शुरुआत

ऋग्वेद में युवक की मुद्रा का  प्रमाण प्राप्त नहीं होता है । तथा योग की शुरुआत आर्य उत्तर लोगों ने की थी अर्थात हड़प्पा सभ्यता में योग की शुरुआत हो गई थी हड़प्पा वासियों को  योग में विश्वास था इस बात की जानकारी मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर मैं एक त्रिमुखी पुरुष को युवक की पद्मासन मुद्रा में बैठा दिखलाया गया है। इसके अलावा मोहनजोदड़ो से तृतीय अलंकरण वाले साल उन्हें एक खंडित पत्थर की मूर्ति के प्रमाण मिले हैं जिसमें व्यक्ति के बाल ऊपर की ओर सांवरे व पीते से बंधे हैं उसकी दृष्टि और दुखों लीवर ना सागर पर केंद्रित है। इस मुद्रा को  योग की संभावी मुद्रा कहा जाता है।

जल पूजा

मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार के प्रमाण मिले हैं इस प्रकार के स्नानागार के निर्माण के प्रमाण अन्य किसी स्थान से प्राप्त नहीं होते । जिससे जल पूजा की पुष्टि होती है। आज की तरह ही हड़प्पा वासी किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले सामूहिक स्नान किया करते थे।

अग्नि पूजा

हड़प्पा सभ्यता में अग्नि पूजा का भी प्रचलन था कालीबंगा लोथल से इसके प्रमाण मिले हैं। कालीबंगा से एक कतार में 7 अग्नि  वेदिका  के प्रमाण मिले हैं जिसमें पशुओं की हड्डियों एवं राख है। लोथल से भी ऐसे अग्निकुंड के साथ प्राप्त होते हैं परंतु अग्नि पूजा के  प्रमाण के दृष्टिकोण से कालीबंगा के   प्रमाण  लोथल से प्राप्त   प्रमाण की तुलना में अधिक मजबूत प्रमाण  है।

वृक्ष व नाग

हड़प्पा वासी वृक्ष व नाग की भी पूजा करते थे सेंधव सभ्यता की मुहर व मृदभांड के ऊपर पीपल बबूल नीम केला ताड़  खजूर आदि वृक्षों  का चित्रण मिलता है । कुछ मोहरों पर पीपल को बाड़े से घेरा दिखलाया गया है हड़प्पा सभ्यता के लोग वृक्ष की विशेषता वृक्ष में पीपल की पूजा किया करते थे हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक क्रियाकलाप में धर्म के अभिन्न अंग के रूप में मंदिर होने के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं जबकि इसी के समकालीन मेसोपोटामिया के उत्खनन में इस तरह के अनेक निश्चित व महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं।

मृतकों के  तीन प्रकार के अंतिम संस्कार 

हड़प्पा वासी अपने मृतकों के  तीन प्रकार के अंतिम संस्कार किया करते  थे-

1- पूर्ण समाधि करण-

इसमें लाश के सिर को उत्तर तथा पैर को दक्षिण दिशा में रखकर दफनाया जाता था

2-आंशिक समाधि कारण-

इसमें  लाश को खुले आसमान के नीचे में छोड़ दिया जाता था गिद्ध कौवा चिल भेड़िए एवं जंगली जानवर आदि के द्वारा लाश खा लेने के बाद बचे हुए पदार्थ को समाधि करण किया जाता था।

3-दाह संस्कार-

इसमें कोलाश  जला दिया जाता था

 सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता में पूर्ण समाधि कारण सर्वाधिक प्रचलित थी

युग्म या जोड़े में  शवाधान या मम्मी के  प्रमाण लोथल से मिले हैं कालीबंगा से भी ऐसे प्रमाण मिले हैं। लोथल के एक कब्र में बकरी के हड्डी के प्रमाण मिले हैं जबकि रोपड़ में मालिक के शव के साथ कुत्ते को दफनाया गया था उल्लेखनीय है कि ऐसे प्रमाण कश्मीर की एक नवपाषाण कालीन बस्ती बुर्ज हो हमसे मिली थी मलेरिया के प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिले हैं।

हड़प्पा सभ्यता के शासक

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