व्याख्यान विधि (lecture method)
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व्याख्यान विधि को लिक अंग्रेजी में lecture method कहते हैं। व्याख्यान विधि को प्रभुत्व वादी शिक्षण विधि की संज्ञा दी जाती है। व्याख्यान विधि शिक्षक केंद्रीय विधि है जिसमें विद्यार्थी केवल श्रोता होते हैं और इस विधि में विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित करने के लिए शिक्षक प्रश्न विधि कभी प्रयोग करते हैं।
व्याख्यान विधि भौतिक विज्ञान को पढ़ाने की सबसे सरल एवं सस्ती विधि हैं प्रयोग संबंधित सामग्री एवं अन्य दूसरी सहायक सामग्रियों के अभाव में ज्यादातर विद्यालयों में यही विधि का प्रयोग किया जाता है जिसके द्वारा विज्ञान संबंधी वर्ष भर के पाठ काम को पूरा करके विद्यार्थी को परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है। इस विधि में पाठ्यक्रम आसानी से जल्दी समय में पूरा हो जाता है अर्थात कम समय में पूरा हो जाता है।
व्याख्यान विधि का स्वरूप
विज्ञान विधि में शिक्षक जो पाठ पढ़ाना चाहता है उसके लिए पहले से ही वह पाठ पुस्तक अथवा अन्य किसी और साधन से पढ़ कर अपना व्याख्यान को तैयार कर लेता है। फिर बाद में कक्षा में उस पाठ से संबंधित सामग्री को अपने व्याख्यान द्वारा छात्रों के सामने प्रस्तुत करता है। जिसे वह अपना भाषण के रूप में छात्रों के सामने प्रस्तुत करता है या उस पर भौतिक विज्ञान संबंधित उस पाठ की सूचनाओं तथा विषय वस्तु को वृष्टि सी करता रहता है। छात्र निष्क्रिय श्रोता वर्कर उसका भाषण सुनते रहते हैं। अर्थात छात्र उसमें सक्रिय भागीदारी नहीं लेते हैं। छात्रों को स्वयं तर्क करने चिंतन करने अथवा बीच में अपनी कोई शंका का समाधान करने का अवसर नहीं प्राप्त होता है। अध्यापक का उद्देश्य केवल अपने तैयार अवधारणाओं को छात्रों के सामने भाषण के रूप में पूरी तरह से केवल सुनाना होता है। इसमें छात्र अथवा छात्राएं रुचि ले रहे हैं कि नहीं उन्हें प्रस्तुत पाठ यह संप्रत्यय ठीक से समझ में आ रहा है अथवा नहीं इन सभी बातों से अधिकतर अध्यापकों से कोई लेना-देना नहीं रहता है इन विधि में गुणवत्ता दोस्त दोनों ही हैं जिनका विश्लेषण नीचे किया जा रहा है।
व्याख्यान विधि के गुण
आर्थिक दृष्टि से उपयोगी- इस विधि से अध्ययन अध्यापन का कार्य कराने से खर्च बहुत कम होता है क्योंकि इस विधि में-
1- वैज्ञानिक सामग्री एवं वैज्ञानिक उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है जैसे- प्रयोगशाला संबंधित उपकरण
2- इसमें विद्यार्थियों की एक बड़ी कक्षा को यह एक हीं अध्यापक अथवा शिक्षक के द्वारा पढ़ाया जा सकता है।
व्याख्यान विधि अधिक सरल और सुविधाजनक – व्याख्यान विधि विद्यार्थी एवं शिक्षकों दोनों के लिए अधिक सुविधाजनक और आसान विधि है। छात्रों को इस विधि द्वारा पढ़ाने में शिक्षकों को ना तो बहुत अधिक तैयारी करनी होती है नाही पढ़ाते समय प्रयोगों का प्रदर्शन करने और विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक रूप में समझने तथा ने अध्यक्ष के प्रति रुचि उत्पन्न करने की आदी झंझट में फंसना नहीं पड़ता है । इस विधि में एक शिक्षक बिना किसी विशेष परिश्रम के अथो तैयारी के अधिक आत्मविश्वास के साथ पढ़ा सकता है। इस विधि में विद्यार्थियों को परीक्षा संबंधित सभी प्रकार की उपयोगी संप्रत्यय अथवा ज्ञान केवल अध्यापक के भाषण सुनने से प्राप्त हो जाता है उन्हें किसी प्रकार के प्रयोगवादी करने से मुक्ति मिल जाती है।
3- समय की बचत की दृष्टि से- इस विधि में कम समय में विद्यार्थियों को सामने अधिक बातें बताई जा सकती है जिससे समय की बचत होती है एवं किस बात की संतुष्टि भी प्राप्त होती है कि जितना समय था उस हिसाब से बहुत कुछ पढ़ा लिया है अर्थात कम समय में अधिकतम पाठ्यक्रम को पूरा कर लिया गया है। इस विधि में समय कम लगने के कारण पाठ्यक्रमों को समय पर समाप्त करने में आसानी होती है।
विशेष परिस्थितियों में उपयोगी-
विद्यार्थियों को पढ़ाते समय ऐसी बहुत सी परिस्थितियां एवं अवसर आ जाते हैं जहां पर इस विधि का प्रयोग बहुत आवश्यक हो जाता है-
1- पढ़ाई गई विषय वस्तु का सारांश देते समय
2- किसी पाठ्यवस्तु की प्रस्तावना करते समय
3-कठिन पर युवकों को स्पष्ट करते समय
4-प्रयोग संबंधित निर्देशन देते समय
5-किसी विषय की ऐतिहासिक घटनाओं को बताते समय 6-प्राणियों के जीवन कथा और अन्य विज्ञान संबंधित अविष्कारों का वर्णन करते समय
7-महान वैज्ञानिक जीवनी से परिचित कराते समय
8- महान व्यक्तियों के जीवनी बताते समय
व्याख्यान विधि के दोष-
आमनोवैज्ञानिक –
व्याख्यान विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है इस विधि में विषय को अधिक महत्व दिया जाता है। इसमें बालक की रुचि यू मनोवैज्ञानिक जरूरतों और अभिरुचि यों की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है। यहां विद्यार्थी एक कुछ श्रोता मात्र के रूप में होता है जो जो निष्क्रिय रूप से अध्यापकों का भाषण सुनता रहता है। अतः यह विधि एक अमन वैज्ञानिक विधि है।
व्यावहारिक ज्ञान को पूर्ण न करना–
इस विधि से व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। व्याख्यान विधि में प्रत्यक्ष प्रयोग एवं प्रत्यक्ष अनुभव संबंधित कोई भी कार्य नहीं किया जाता। करके सीखने का सिद्धांत जैसे उपयोगी सिद्धांत का पूरी तरह से मना ही की जाती है यही कारण है कि इस विधि द्वारा पुस्तक संबंधित केवल शाब्दिक ज्ञान ही प्राप्त हो सकता है परंतु आज जिस तरह से विज्ञान को सुनना देखे या व्यवहार में लाया जा सकता है उसकी प्राप्ति नहीं हो पाती।
मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास नहीं करती–
इस विधि से पढ़ने वाले विद्यार्थियों मैं मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता जिसमें विद्यार्थी अध्यापकों के भाषण को सुनते रहते हैं एवं उनकी सुनी हुई बातों को सत्य मानकर मस्तिक में धारण कर लेते हैं जिससे विद्यार्थी न तर्क करते हैं ना चिंतन करते हैं और उनका मस्तिष्क पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता । व्याख्यान विधि केवल निष्क्रियता के रूप में सुनने और सुनी सुनाई बातों को दोहराने पर ही जोर देती है।
विज्ञान शिक्षण के मुख्य उद्देश्य के प्रतिकूल-
आज के इस आधुनिक युग में विज्ञान शिक्षण एक अनिवार्य विषय है। जिससे विद्यालयों में बच्चों के मस्तिष्क मैं वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पादन करने का प्रयास किया जाता है इस विधि द्वारा ना तो विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही वैज्ञानिक ढंग का प्रशिक्षण दिया जाता है अतः यह विधि उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाती है।
5-विषय को समझने में कठिनाई-
अच्छा एवं स्पष्ट भाषण देना भी एक महत्वपूर्ण काला है। जो अच्छे वक्ता होते हैं वह अच्छे अध्यापक होते हैं परंतु सभी अध्यापक अच्छे वक्ता नहीं होते। अध्यापकों की इस गुण के अभाव में भी विद्यार्थी पाठ को अच्छी तरह से नहीं समझ पाते हैं।
इस विधि से अधिगम कराते समय स्वाभाविक रूप से पढ़ने की गति अधिक तेज होती है। जितनी गति से ज्ञान की बौछार इस विधि से की जाती है इतनी शीघ्रता से बटोरने की शक्ति और योग्यता बहुत ही कम विद्यार्थियों में पाई जाती है जिससे सभी विद्यार्थी इस विधि का लाभ नहीं उठा पाते है।
विज्ञान एक एसा विषय है जिसे एक निश्चित कर्म में पढ़ाना होता है यदि किसी कारणवश विद्यार्थी किसी एक क्रम को स्पष्ट से नहीं समझ पाता तो तो उसके आगे की बात को भी विद्यार्थी ठीक से नहीं समझ पाता है।
भौतिक विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसे केवल सुनकर नहीं समझा जा सकता है जिसमें प्रयोग सहायक सामग्री प्रत्यक्ष अनुभव प्रत्यक्ष प्रयोग आदि बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। जिसे करके सीखने के सिद्धांत पर ही अच्छी तरह से समझा जा सकता है एवं उसका दैनिक जीवन में उपयोग किया जा सकता है केवल सुनने से स्पष्ट ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती।