निर्धनता का अर्थ एवं परिभाषा – नमस्कार दोस्तों इस अध्याय में हम लोग निर्धनता से अभिप्राय को समझेंगे
निर्घनता समाज की एक सबसे बड़ी एवं गंभीर समस्या है । निर्धनता से अभिप्राय निर्धनता एक सापेक्ष शब्द है । जिस से प्रकार प्रकाश एवं अंधकार का सम्बन्ध है , उसी प्रकार निर्धनता और प्रचुरता का भी सम्बन्ध होता है । इनका अर्थ एक दूसरे की तुलना से ही स्पष्ट हो सकता है , ये एक दूसरे के विपरीत होते हैं । निर्धनता एक सापेक्ष स्थिति है , इस कारण इसकी परिभाषा अनेक विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से दी है –
एडम स्मिथ ने कहा- “ एक मनुष्य उन्हीं अंशों में प्रचुर व दरिद्र होता है जिन अंशों में उसे जीवन की आवश्यकतायें , सुविधायें एवं मनोरंजन के साधन उपभोग के लिए प्राप्त हो सकते है |”
गिलिन और गिलिन ने निर्धनता की परिभाषा इन शब्दों में की है- निर्धनता वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति अपर्याप्त आय या बुद्धिहीन व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को इतना उच्च नहीं रख पाता है कि उसकी शारीरिक व मानसिक क्षमता बनी रह सके और उसको तथा उसके प्राकृतिक आश्रितों को समाज के स्तरों के सुधार , जिसके वे सदस्य हैं उपयोगी ढंग से कार्य करने के योग्य बना सके । “
गेडार्ड ने लिखा- ” निर्धनता उन वस्तुओं का अभाव है जो कि व्यक्ति व उसके आश्रितों को स्वस्थ एवं पुष्ट रखने के लिए आवश्यक है । “
निर्धनता के कारण –
निर्धनता के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं
( अ ) व्यक्तिगत कारण – मनुष्य की निर्धनता के प्रमुख व्यक्तिगत कारण निम्नलिखित हैं –
( 1 ) बीमारी – मनुष्यों को अयोग्य बनाने में बीमारी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है । एक ओर तो बीमारी का इलाज कराने में जमा – धन खर्च होता है , और दूसरी ओर बीमारी के कारण व्यक्ति कार्य करने अयोग्य होजाता है इसलिए व्यक्ति की आय भी बन्द हो जाती है ।
( 2 ) मानसिक रोग – वर्तमान समय में मानसिक रोग भी मनुष्यों को कार्य करने के अयोग्य बना दे रहा है , इस कारण निर्धनता उत्पन्न होती है ।
( 3 ) दुर्घटनायें – आधुनिक युग में दुघटनाओं की संख्या में काफी वृद्धि हो गई है । आवागमन के साधन रेलगाड़ी , मोटर , हवाई जहाज इत्यादि तथा मिलों , फैक्ट्रियों में भी आधुनिक यन्त्र , विद्युत से चालित होने के कारण श्रमिक से तनिक भी असावधानी होने पर उसे दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है । इन दुर्घटनाओं के कारण व्यक्ति अन्धे , बहरे , लंगड़े , लूले इत्यादि अवस्था को प्राप्त होते हैं और जीवन की सारी आशाओं के प्रति उदासीन हो जाते हैं ।
( 4 ) आलस्य – आलस्य निर्धनता का एक प्रमुख कारण है । धनोपार्जन के लिए परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है । परन्तु बहुत से लोग आलस्य तलब होते हैं और काम से भी जी चुराते हैं । कुछ लोग प्रकृति से ही आलसी एवं कामचोर होते हैं ।
( 5 ) अपव्यय – आधुनिक युग में यह तत्व निर्धनता बढ़ाने में महत्वपूर्ण होता जा रहा है । लोग अपनी ज्यादातर लोग आय सिनेमा , होटल , फैशन की वस्तुओं पर व्यय करते है । परिणाम स्वरूप भोजन एवं अन्य आवश्यकतायें उचित रूप से पूर्ण नहीं हो पाती हैं |
। ( 6 ) जुआ खेलना – जुआ खेलने के कारण भी व्यक्ति दरिद्र बना रहता है , जुआ मनुष्य को आलसी बना देता है और उसकी कार्य क्षमता को नष्ट कर देता है , जुआरी भाग्य पर विश्वास करने लगता है और कार्य में रूचि नहीं लेता है ।
( 7 ) मद्यपान – मद्यपान निर्धनता को बढ़ाता है । मद्यपान की आदत पड़ जाने पर मनुष्यम क ग राज अछ लापरवाह एवं आलसी हो जाता है । मद्यपान के कारण शारीरिक , मानसिक एवं नैतिक पतन जाता है । दुख और मद्यपान का घनिष्ट सम्बन्ध है । ये एक दूसरे के सहायक होते हैं ।
( 8 ) संयुक्त परिवार – स्त्रियों का अधिक सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति होना निर्धनता को उत्पन्न करता है । निम्न कारण जो निर्धनता को अधिक प्रोत्साहित करते हैं- ( त बाल विवाह , ( 2 ) घनी आबादी , ( 3 ) अनैतिकता , ( 4 ) अज्ञानता , ( 5 ) विचित्र विश्वास एवं धारणायें ।
( ब ) भौतिक कारण – भौतिक पर्यावरण के निम्न कारण निर्धनता को उत्पन्न करते हैं
( 1 ) प्राकृतिक साधनों की कमी – कुछ क्षेत्र प्राकृतिक उत्पादन की दृष्टि से बेकार होते हैं । इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति अन्य उपजाऊ क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों की तुलना में गरीब होते हैं । पहाड़ी हिस्सों में रहने वाले साधारणत : दरिद्र होते हैं । क्योंकि उनके saसाधन सीमित होते हैं ।
( 2 ) प्रतिकूल मौसम – यदि फसल पकी हुई हो और वर्षा हो जाय या ओले गिर जाये तो किसान की सारी आशाओं पर पानी फिर जान निश्चित है उसकी कमाई मिट्टी में मिल जाती है । इस तरह व्य वह गरीब और दरिद्र हो जाते है । प्रतिकूल मौसम निर्धनता को प्रोत्साहन देता है ।
( ३ ) प्राकृतिक विपदायें – प्राकृतिक आपदाये एवं विपदायें व्यक्तियों को दरिद्र बनाने में अधिक जिम्मेदार होती है । नदियों में बाढ़ आ जाना , बिजली का गिरना , समुद्री तूफान , आग का लग जाना जा ज्वालामुखियों विस्फोट होना , भूचाल का आना आदि प्रमुख विपदायें हैं ।
( स ) आर्थिक कारण – निर्धनता के आर्थिक कारण निम्नवत् हैं
( 1 ) अपर्याप्त उत्पादन – भारतवर्ष में निर्धनता का यह प्रमुख कारण है । यह भारत में देश जो खनिज पदार्थों का लोक है , जहाँ गंगा यमुना एवं अन्य नदियाँ बह रही हैं । जहाँ खेती की जान हरियाली से पृथ्वी मखमल सी बिछी रहती है । जहाँ फल – फूल एवं उपजाऊ भूमि सभी कुछ है , प्र . जो प्रकृति धाम है । जहाँ का कण – कण स्वर्ग है , में भी निर्धनता का साम्राज्य है । इसका प्रमुख कारण यह है कि यहाँ उत्पादन के साधन का न होना हैं ।
( 2 ) असमान वितरण – निर्धनता का दूसरा प्रमुख कारण असमान वितरण है । एक ओर पूंजीवादी करोड़ों रूपयों की आय प्रतिवर्ष प्राप्त करते हैं और दूसरी ओर यह हजारों में नहीं पहुँचती । क्योंकि देश का अधिकांश धन पूंजीवादियों के हाथ में रहता है ।
( 3 ) आर्थिक उतार – चढ़ाव – आर्थिक उतार – चढ़ाव के कारण भी व्यापार में बड़ी हानियाँ अध होती हैं । आर्थिक उतार के समय में व्यापार बिल्कुल ठण्डा पड़ जाता है और लोगों की आय उत्ता एकदम गिर जाती है । इन आर्थिक उतारों के कारण निर्धनता को बड़ा प्रोत्साहन मिलता है ।
( 4 ) बेकारी – बेकारी निर्धनता को बढ़ाने का सबसे प्रमुख कारण है । यह कारण अकेला ही शेष कारणों के बराबर है । निर्धनता के निकटतम कारणों में अधिकांश रूप से बेकारी ही है । है । प्रतिशत निर्धनता का उत्तरदायित्व बेकारी पर होता है ।
( द ) सामाजिक कारण – निर्धनता को जन्म देने एवं बनाये रखने में समाज का भी बहुत में है । बड़ा हाथ है । नई आर्थिक व्यवस्था जिस गति में परिवर्तित हुई है एवं हो रही है , सामाजिक है । व्यवस्था उसकी तुलना में बहुत पीछे हैं । सामाजिक संगठन आधुनिक परिस्थितियों के अनुरूप स्वा नहीं हैं । इसके कारण विभिन्न संस्थायें एक दूसरे के अनुकूल नहीं बन पाती हैं । यह भी निर्धनत विच का एक कारण है । जैसे
( 1 ) शिक्षा व्यवस्था में कमी – शिक्षा व्यवस्था जब वर्तमान अवस्था एवं मांग के अनुसार नहीं के होती तो बड़ी कठिनाई होती है । भारतवर्ष इसका ज्वलन्त उदाहरण है । लाखों विद्यार्थी बी 0 ए 0 बजीति एम 0 ए 0 की उपाधि लेकर विश्वविद्यालयों से निकलते हैं , परन्तु वे व्यवहारिक जगत में किसी भी काम के नहीं होते हैं , आज कल एक तो दिन प्रतिदिन विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ती जा रही समा लाभ है । सैद्धान्तिक ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक जीवन का इन्हें बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता है । इन स्त्रि सबका प्रभाव यह होता है कि वे नवयुवक अपने जीवन के आरम्भ से ही निरूत्साहित हो जाते हैं और इनका आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है । जो इनकी कार्य क्षमता को नष्ट कर देता है ।
( 2 ) गन्दी एवं घनी बस्तियाँ – नवीन आर्थिक व्यवस्था के कारण बड़े – बड़े नगरों का भीख व्यति निर्माण हो गया है । इन नगरों में लाखों की संख्या में लोग रहते हैं , परन्तु इनके रहने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है । नगरों में मकानों के किराये इतने अधिक होते हैं कि लोगों को गन्दी एवं घनी बस्तियों में रहने के लिए बाध्य होना पड़ता है । यह सामाजिक व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष है ।
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